*हुल दिवस विशेष (30 जुन 1855)*
निकल पड़े हैं जंग-ए-राह में
फिरंगी से लड़ने को
जान हथेली पर रख कर
आजाद वतन अब करने को
सन् सत्तावन से पहले ही
संताल की धरती दहल उठी
सिद्दो, कान्हो और चांद, भैरव से
अंग्रेजी सेना कहर उठी
शोषण और दमन चक्र से
आजाद कराकर मानेगें
संताल सहित पूरे प्रदेश का
इतिहास रचाकर मानेगें
ले प्रण निकल पड़े हैं घर से
सम्पूर्ण समाज का आशीष है सर पे
30 जून थी वह तारीख जब
तुमने बिगुल बजाया था
फिरंगी और शोषण से मुक्ति का
तुमने अलख जगाया था
दहल उठी अंग्रेजी सेना
तेरे गुरील्ला वार से
हुई लड़ाई संताल क्षेत्र में
"संताल हुल" जिसे नाम दिया
अंग्रेज नहीं टीक सकते यहां पर
तुमने ये पैगाम दिया
फिरंगियों ने अपने दमन चक्र से
हैं तुमको गिरफ्तार किया
चढ़ गए फांसी पर चुम के फंदा
पर अधीनता नहीं स्वीकार किया
तेरे इस अदम्य साहस को
हैं सौ-सौ बार प्रणाम मेरा
गर्व हमें हम जन्मे जहाँ
हैं शहादत का इतिहास तेरा
*गोपाल श्रीवास्तव*
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