सज्जन कुमार गर्ग
जमालपुर।आनंदमार्ग के धर्मगुरु और प्रर्वतक श्री श्रीआनंदमूर्ति के पद चिन्हों पर चलने के संकल्प के साथ आनंदमार्ग प्रचारक संघ के सानिध्य में आयोजित तीन दिवसीय धर्म महा सम्मेलन संपन्न हो गया।धर्ममहा सम्मेलन में विभिन्न कार्यक्रमों तथा श्री श्रीआनंदमूर्ति के प्रीत दर्शन और विचारों के विभिन्न आयामों को पुरोधा प्रमुख विश्वदेवानंद अवधूत तथा अन्य वक्ताओं ने रेखांकित किया,धर्ममहा सम्मेलन स्थल पर जब पुरोधा प्रमुख का आगमन हुआ तो उनका स्वागत बाबा के जयकारों के साथ हुआ उनके मंच पर आसीन होने के उपरांत कोशिकी एवं तांडव नृत्य का प्रदर्शन किया।इस अवसर पर उन्होंने कहा कि बाबा आनंदमूर्ति जी महा संभूति के रूप में तारक ब्रह्नम हैं और अपने भक्तों के साथ अत्यंत आत्मीयता का संबंध स्थापित किया,वे भक्तों के हर भावना का कद्र करते थे।उनकी हर उच्च भावना एवं आंकाक्षा को पूरा करते थें इनके भक्तों के लिए बाबा आनंदमूर्ति जी अनन्य आत्मीय थें।उनके शिष्य उनका सान्निध्य लाभ कर अपने आप को उसी प्रकार भावविभोर कर देते थे जैसे गोपियां कृष्ण के आकर्षण में मदमस्त हो जाते थें।आनंदमार्ग प्रचारक संघ के सानिध्य में आयोजित तीन दिवसीय विश्वस्तर धर्ममहा सम्मेलन में परम पिता बाबा की जय जय,एक चुल्हा एक चौंका,आनंदमार्ग अमर रहे मानव मानव एक हो,संदेश को जन-जन तक पहुंचाना हैं के साथ सैकड़ों साधक साधिकाएं संन्यासी की अपस्थित में पुरोधा प्रमुख आचार्य विश्वदेवानंद अवधूत के मार्गदर्शन में विप्लवी विवाह आनंदमार्ग के विधि विधान से संपन्न हुआ मौके पर रायपुर छत्तीसगढ़ के मदन कुमार संग तृप्ति,पटना के ओम कालेश्वर संग पुष्पा दरभंगा के जयंत राज संग मनीषा परिणय सूत्र में बंध गए। पुरोधा प्रमुख आचार्य विश्वदेवानंद अवधूतने धर्ममहा सम्मेलन के दौरान अपने प्रवचन में कहा कि पुरूषोत्तम ही विशवनाम के केन्द्रबिंदु हैं,इस सृष्टि परिधि के अंदर ही सृष्टि जीवों का अस्तित्व है जिनकी स्वाभाविक गति पुरूषोत्तम की ओर होता हैं,सभी जीवों को अपने अपने अस्तित्व तरंगों के अनुसार निदिस्ट पथो पर चलना
पड़ताहैं, उन्होंने कहा कि आनंद मार्ग अधायात्मिक साधना का पथहैं,यही धर्मसाधना हैं।धर्म साधना का अनुशीलन हर मनुष्य पुरुष में प्रतिष्ठित होता हैं क्योंकि यह साधना आनंद स्वरूप ब्रह् सताको प्राप्त करने का साधन हैं जो मूल भाव से भक्ति भाव पर आधारित हैं।साधक परम पूरूष के भाव में इतना विलीन हो जाता हैकि उनके मन की संपूर्ण अंतरंगता सिर्फ परम पूरूष की तरफ ही प्रभावित होती हैं, उन्होंने कहा कि कर्म निष्ठा एवं ज्ञान निष्टा भक्ति की ही पूर्वास्था है। उन्होंने कहा कि बाबा श्रीआनंदमूर्ति जिस धराधाम पर अतिमूर्त होकर संपूर्ण मानवता को साधना की वैज्ञानिक प्रक्रिया का प्रतिपादन कर उसमें संतुष्ट जीवभाव को जगा दिए हैं जिसकी मदद से मनुष्य पुरूषोत्तम जो विश्व का केन्द्र नाभि हैं उसमें अपना एकत्व सीमित कर सकता है धर्ममहा सम्मेलन में आनंदमार्गी अखंड कीर्तन में झूमते नजर आए,तांडव नृत्य कोशिकी नृत्य में बाबा नाम केवलम का जयघोष होता रहा। श्रीआनंदमूर्ति जी द्वारा रचित प्रभात रंजन संगीत की स्व लहरियों पर कलाकारों ने एक से एक मनमोहन कार्यक्रम प्रस्तुत किये वही बड़ी संख्या में लोगों ने आनंद मार्ग की दीक्षा ली। धर्म महा सम्मेलन में सैकड़ों आचार्य साधक साधिकाएं ने हिस्सा लिया ओर बाबा की अनुभूति को आत्मसात किया।पूरी सम्मेलन की व्यवस्था में आचार्य अभिरामानंद अवधूत आचार्य प्रणवेशानंद अवधूत आचार्य अमलेशानंद सहित साधक सुनील आनंद सहित अन्य ने सहारनीय भुमिका निभाई।
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