रामदयाल मुंडा जनजातीय कल्याण शोध संस्थान में सात दिवसीय ‘रचनात्मक लेखन कार्यशाला’ का तीसरा दिन
प्रसिद्ध कहानीकार विनोद यादव ने कहानी और संस्मरण के बीच के अंतर को बताया।
‘रचनात्मक लेखन कार्यशाला’ के तीसरे दिन पहले सत्र की कक्षा में प्रसिद्ध कहानीकार विनोद यादव ने कहानी और संस्मरण के बीच के अंतर को समझाया|
उन्होंने कहा कि कहानी में कल्पनाओं से रचना की जाती है। संस्मरण में कल्पनाएं नहीं होती, वहां वास्तविक घटनाओं का जिक्र होता है। वर्तमान में संस्मरण को कहानी की शक्ल में लिखा जाने लगा है। जो संस्मरण में घटित नहीं हो पाता उसे कहानियों के जरिए घटित करने की कला ही यह नई विधा है।
वरिष्ठ उपन्यासकार अलका सरावगी ने उपन्यास लेखन की कक्षा में कहा कि कहानी यथार्थ होते हुए भी कल्पना के माध्यम से रची जाती है। कहानी का मूल तत्व किस्सागो होता है।
उन्होंने महात्मा गांधी पर लिख रही नये उपन्यास के कुछ दृश्य भी सुनाए और अपनी रचना प्रक्रिया भी प्रतिभागियों से साझा की।
इस कक्षा में प्रतिभागियों ने उपन्यास और कहानी लिखने की आवश्यक कला के बारे में अपने जिज्ञासा भरे सवाल पूछे।
मुंबई के पटकथा लेखक मिथिलेश प्रियदर्शी ने कहानी की संरचना पर प्रतिभागियों से जरूरी जानकारी साझा की। उन्होंने एक कहानी में किरदारों की रचना,उनकी यात्रा,उनके लक्ष्य और कहानी के अंत पर विशेष बातचीत की।
सिनेमा कार्यशाला में नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा दिल्ली के एल्युमिनाई और वरिष्ठ नाट्यकर्मी संजय लाल ने एक्टिंग की कक्षा में समानांतर सिनेमा की फिल्मों को दिखाकर उन फिल्मों के किरदारों की एक्टिंग पर प्रतिभागियों से विशेष चर्चा की।
उन्होंने प्रतिभागियों को मैथड एक्टिंग करने के गुर सिखाए|इस दौरान प्रतिभागियों ने कुछ फिल्मों के दृश्य के अभिनय का अभ्यास भी किया।
समानांतर सिनेमा की कक्षा में राहुल सिंह ने उसके विकास और उद्भव के बारे में बात की। कहा, समानांतर सिनेमा की फिल्मों का विषय आम आदमी के जीवन का सच दिखाता है।
समानांतर सिनेमा बनाने का एक कारण उस दौर की सामाजिक संस्कृति और भाषा का वास्तविक चित्रण किया जाना था। उन्होंने इस दौरान मृणाल सेन की फिल्म मृग्या दिखाकर प्रतिभागियों से चर्चा भी की।
झारखण्ड के डॉक्यूमेंट्री फिल्म निर्माता दीपक बाड़ा ने कहा कि शोषण करने वाले लोग मेनस्ट्रीम सिनेमा बना रहे हैं। शोषित समाज जब सिनेमा बनाता हैं, उसे ही समानांतर सिनेमा कहा जाता है।
समानांतर सिनेमा का विषय हमेशा यथार्थ पर आधारित होता है। उन फिल्मों में हमेशा समाज को लेकर एक सामाजिक टिप्पणी होती है।
उन्होंने डॉक्यूमेंट्री निर्माण से जुड़ी बारीकियां प्रतिभागियों से साझा की। अनुवाद कार्यशाला की पहली कक्षा प्रो.राजेश ने ली।
उन्होंने कहा कि अनुवाद के जरिए एक संस्कृति से दूसरी संस्कृति की यात्रा की जाती है, इसलिए अनुवादक को दोनों संस्कृति की जानकारी जरूरी है।
उन्होंने अनुवाद की मूल भाषा यानी स्रोत भाषा और लक्ष्य भाषा,उनके मूल तत्व,प्रकार और महत्वपूर्ण सिद्धांतों पर चर्चा की। इस दौरान उन्होंने प्रतिभागियों से अनुवाद का कुछ अभ्यास भी कराया।
रामदयाल मुंडा जनजातीय कल्याण शोध संस्थान के डायरेक्टर रणेंद्र ने कहा कि सभी कहानियों को तार्किक नजरिए से देखने की जरूरत है।
0 Comments