पब्लिक स्कूल्स एंड चिल्ड्रेन वेलफेयर एसोसिएशन (पासवा) के अध्यक्ष आलोक कुमार दूबे, लाल किशोर नाथ शाहदेव, डॉ राजेश गुप्ता (छोटू), सुश्री फलक फातिमा,अभिषेक साहू, संजीत यादव, फलक फातिमा, मेंहुल दूबे, अनिकेत कुमार, अज़हर आलम, रोशन लिंडा, अनुष्का कुमारी, चांदनी कुमारी, अवनी कुमारी, अमन कुमार, संजय तिर्की सहित अन्य पासवा पदाधिकारियों ने आज हूल क्रांति दिवस के मौके पर मोरहाबादी स्थित सिद्धू कान्हू पार्क पहुंचकर भारतीय इतिहास में स्वाधीनता संग्राम की पहली लड़ाई में बलिदान देने वाले महान संथाल विद्रोह के प्रणेता सिद्धू कान्हू के प्रतिमा पर माल्यार्पण कर उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित किया। इस मौके पर पासवा अध्यक्ष आलोक कुमार दूबे ने कहा आजादी की लड़ाई में अंग्रेजों के खिलाफ आदिवासियों की संघर्ष गाथा और बलिदान को याद करने का आज खास दिन है। 30 जून 1855 के9 सिद्धू और कान्हू के नेतृत्व में साहेबगंज जिला के भोगनाडीह गांव से विद्रोह शुरू हुआ था और नारा दिया गया था करो या मरो, अंग्रेजों हमारी माटी छोड़ो। उस समय 50 हजार से अधिक लोगों ने अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन किया। इसमें 20 हजार लोगों ने अपनी शहादत दी थी और दोनों भाइयों को फांसी की सजा दी गयी थी। जो देश के इतिहास में दर्ज है और उन्हीं की याद में संथाल हूल क्रांति दिवस मनाया जाता है।
वरिष्ठ पासवा नेता लाल किशोर नाथ शाहदेव ने श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि 1857 में सिपाही विद्रोह हुआ था लेकिन उसके पहले ही 1855 में आज के साहिबगंज भोगनाडीह में सिद्धू और कानू दो आदिवासी भाइयों के नेतृत्व में अंग्रेजों के खिलाफ आजादी की नींव डाली गई थी और उस वक्त एकीकृत बिहार में बंगाल, उड़ीसा, झारखंड काफी प्रभावशाली तरीके से यह आंदोलन उपजा था जिसकी भनक अंग्रेजी हुकूमत को नहीं लग पाया था हालांकि उन्होंने उस लड़ाई में अपनी शहादत दी थी लेकिन उनका योगदान इस देश की आजादी में कभी नहीं बुलाया जा सकता है।
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